7/20/2012

पृथ्वी पर बढ़ रही तपन

पृथ्वी पर बढ़ रही तपन,
पिघल रहे हिमपर्वत हर क्षण
कटते जा रहे सारे वन
मुश्किल आ पड़ी भीषण
पृथ्वी पर बढ़ रही तपन,
पिघल रहे हिमपर्वत हर क्षण
क्रंदन कर रहा कण-कण
खतरे मैं है पर्यावरण
फिर क्यूँ नहीं पिघलता मानव मन?
क्यूँ नहीं पिघलता मानव मन?


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